शायरी 

लब खामोश, जुल्फ खुली, नज़रों में गहराई है,

अबकी बार इश्क़ की, महफ़िल में रुसवाई है।

अपना हाथ बढ़ा देते है, मैं जब गिरने लगता हूँ

दुनिया जाने क्यूँ बोले है, खुदा मेरे हरजाई है।

इश्क़ के आगे, पंडित, मोमिन, काज़ी नाकाम हुए

खुदा को पाने की दुनिया में, ये ही तो सच्चाई है।

रात को देखा, उतार मुखोटा, मैंने खुद को शीशे में

बुराई ने अपना लिया है, मुझे, नहीं बची अच्छाई है।

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